Thursday, February 14, 2008

शिकायत

किया व्यापर दर्द का
दिया दर्द और हरबार दर्द ही तौला,
फ़िर समेत कर सारी अधूरी हसरतें
पुराना सा एक म्यूज़ियम बना डाला।

बंद करली खिड़कियाँ सारी
डाल दिया दरवाजों पर ताला,
कैद कर ढेर सारी पहचानी रोशनियाँ
एक गुमनाम अँधेरा बना डाला।

बनकर याद तुम्हारे दिल मे ही रही
जानेक्यों तुमने ख़ुद अपने ही दिल को छला,
रोया मन जब भी तुम्हारा साथ देने को
पर मुस्कुराकर तुमने हर बार बेगाना बना डाला.

6 comments:

रेवा स्मृति (Rewa) said...

आपकी कविता काफ़ी अच्छी लगी. अच्छा लिखा है आपने. वैसे यहाँ तो हर चीज़ की व्यापार होने लगी है.

Prem Piyush said...

कविता काफी भावपूर्ण बन पड़ी है ।

चिट्ठा-जगत में पदार्पण करने की शुभकामनाएँ ।

निशा said...

शुक्रिया पीयुष जी, शुक्रिया रेवा जी मैंने लिखते समय सोचा भी नही था कि कोई पढेगा भी। बस लिख गई ऐसे ही कुछ कहने का जी चाहा। कुछ लोग कहते हैं कि कविता ऐसे ही लिखी जाती है मुझे यकीं नही था पर आप लोगो के कमेन्ट पढ़ के लगा शायद ऐसे ही होता है, आखिर जिसने कहा था वो भी ऐसे ही तो लिखता होगा। पीयुष जी चिटठा जगत बड़ा अच्छा नाम है ब्लॉग के लिए। एक कहानी लिखने कि इच्छा है, कोशिश भी कर रही हूँ बस जो कुछ भरा है दिमाग मी वही खाली करने कि कोशिश, आप लोगो कि प्रतिक्रिया पढ़ के उत्साह मिला है शायद पूरी हो जाय।

आप लोगो को फ़िर से शुक्रिया!

रेवा स्मृति (Rewa) said...

Hmmm....Plz no 'JI' with my name and mujhe aap se jyada apnapan tum mein feel hota hai ishliye Nisha aap mujhe plz 'tum' se sambodhit karna. :-)

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

बंद करली खिड़कियाँ सारी
डाल दिया दरवाजों पर ताला,
कैद कर ढेर सारी पहचानी रोशनियाँ
एक गुमनाम अँधेरा बना डाला।

achchhi panktiyaa hein...badhaayee

daanish said...

"bn kr yaad tumhare dil mein hi rahi, jane kyu tumne khud apne hi dil ko chhlaa.."

dard ki ek alag hi tarah ki nayaab.si tarjumaani....
waah...kaheen ek shikayat to hai,
lekin lehjaa apnepan ka hi hai..

bahot hi achhi kavita bn parhi hai
badhaaee svikaar kareiN.
Aur "kaavya" ko apne "ghar"
mei panaah dete rahiye...
---MUFLIS---