tag:blogger.com,1999:blog-63501792886112618322024-02-20T04:20:20.861-08:00Soona Soona Lamha Lamha!रोयेंगे हम हजार बार कोई हमे रुलाये क्यों!निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-33883556682396356082009-02-11T01:43:00.000-08:002009-02-11T01:43:19.141-08:00दिल एक पुराना सा म्यूज़ियम है: वहाँ एक कुत्ता था<a href="http://kuhasa.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html">दिल एक पुराना सा म्यूज़ियम है: </a><div><a href="http://kuhasa.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html">वहाँ एक कुत्ता था</a></div>निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-45539068130704838472009-02-03T03:05:00.000-08:002009-02-03T03:05:21.983-08:00दिल एक पुराना सा म्यूज़ियम है: बेतरतीब संयोजन<a href="http://kuhasa.blogspot.com/2009/01/blog-post_31.html">दिल एक पुराना सा म्यूज़ियम है: बेतरतीब संयोजन</a>निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-41603142930284864502009-02-03T03:02:00.001-08:002009-02-03T03:02:10.305-08:00दिल एक पुराना सा म्यूज़ियम है: नैनी झील<a href="http://kuhasa.blogspot.com/2009/02/blog-post.html">दिल एक पुराना सा म्यूज़ियम है: नैनी झील</a>निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-1376894428353566092009-01-23T08:56:00.000-08:002009-01-23T08:58:39.336-08:00आयें कुहासा पर<div><a href="http://kuhasa.blogspot.com">मै अब रौशन के ब्लॉग पर ही लिख रही हूँ आप सभी का वहां पर स्वागत है </a></div><div><a href="http://kuhasa.blogspot.com">क्लिक करें यहाँ </a></div>निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-234485686772859782008-07-07T02:08:00.000-07:002008-08-09T01:06:23.649-07:00Last post!Today I reached back to France and joined office. Its time for home sickness nowJ . But work is work. One can not remain at home and listen songs and talk friends always.<br />For some reasons I have got to stop writing on this blog however I have an offer from a friend to keep writing on his blog. I have accepted his offer.<br />I the mean time many of my friends who read my previous post on my blog are desperate to know who were those Pankhudi, and others in real life. I had no problem any time in sharing names of those but there are others like those real people themselves , who don’t like it to be shared. I have no contacts with the character Pankhudi but other are saying against sharing their names. Alex! Your mail contained some set of detective like questions and that is why I choose not to answer those questions. However I never knew u learnt such a good hindi.<br />Coming to bloging! Blog urls are <a href="http://www.roushan.wordpress.com/">http://www.roushan.wordpress.com/</a> and <a href="http://www.kuhasa.blogspot.com/">www.kuhasa.blogspot.com</a> these blogs are of my childhood friend Ravi, the guy whom I trust and respect most। Other friends need not to be angry for childhood friend is something different friends। <br />Ravi is some sort of self-proclaimed thinker, politician, poet and many things he can assumeJ don’t worry he doesn’t bores once you have got to understand him. Years back I thought understanding him is a tough thing but you guys see every person has got some predictability.<br />Some times he is lazy like me and doesn’t posts something on his blog for months and sometimes he may pour in lots of things in few time.<br />For last few months, (I have guessed his google password ) I have been working on his few blogs(the guy is champion in registering new blogs and forgetting them). One of those is only about his poems. He writes cute love poems, and often I think it would have been better if he starts being in ove in place of writing poems. I had some of his poems and kept it on a blog which he would have been forgotten. Now I shall be working on that again. Soon you will know a cool address of lovely romantic poems.<br />Yeah I shall be deleting this blog very soon and this is last post hereनिशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-72647490799861542742008-06-21T21:52:00.000-07:002008-06-21T23:16:42.363-07:00स्वार्थ(इस प्रसंग के पात्र काल्पनिक नही हैं और वास्तविक जिन्दगी से उनका गहरा रिश्ता <span class="">है। </span>ये प्रसंग दिमाग में ऑरकुट पर एक स्क्रैप देख कर उपजा है।)<br /><br />नीलू ने झटके से स्कूटी रोक दी अब वो कहीं दूर देख रही थी।<br /><br />दी! वो रही आपकी पंखुडी ब्लू सूट <span class="">में। </span>उन लोगो का क्लास ख़त्म हो गया है मै आपको उससे मिलवा दूँ?<br /><br />नही <span class="">मैं मिल लूँगी तुझे लेट हो रही होगी.- हाँ वो तो है. अच्छा अब मै चलती हूँ. ये स्कूटी यही खड़ी कर देना और मुझे टाइम पर लेने आ जाना.</span><br /><br /><span class="">नीलू उछलते कूदते चल पड़ी अपने क्लास की ओर और मै रुक कर देखने लगी।तो ये है पंखुड़ी. मैने सोचा। मै स्कूटी पर ही बैठी रही. अचानक मुझे डर लगने लगा. अनिमेष कि बातें याद आने लगी. उसके अपने अंदाज में उसने सोचते हुए कहा था. शायद अच्छी लगती है पता नही पर मै बात बढ़ाना नही चाहता इसीलिए मैने आजतक उससे बात तक नही की है. वो अनिमेष जिसे मै चाहती थी और सोचती थी की कभी ना कभी उसके भी दिल में मेरे लिए ऐसा ही कुछ जागेगा, किसी और के प्रति आकर्षित था और उसकी आँखें कहती थी की ये आकर्षण कुछ ज़्यादा ही है. मै क्यों मिलना चाहती थी पंखुड़ी से ये तो मुझे नही पता था पर उसे देख कर ऐसा लग रहा था की मै अनिमेष को खो ही चुकी हूँ. कितनी स्वीट दिख रही थी वो. मैने स्कूटी के शीशे में खुद को देखा. आँख मे जलन के भाव थे और मुझे अपना चेहरा अच्छा नही लगा। </span><br /><span class=""><span class=""></span>वो एक और लड़की के साथ थी और अब एक पेड़ के गोल चबूतरे पर आ के दोनो बैठ गयीं. मैने साहस बटोरा और उसकी तरफ बढ़ गयी।</span><br /><span class=""><span class=""></span>-एक्सक्यूस मी ये थर्ड ईयर बॉटेनी की क्लास कहाँ होती है?</span><br /><span class=""> मैने सीधे उसी से पूछा वो जैसे किसी सोच में थी उसके साथ की लड़की ने एक तरफ इशारा किया मैने उस दिशा में देखा तक नही।</span><br /><span class=""><span class=""></span>-आप किस क्लास की हैं?</span><br /><span class="">-थर्ड ईयर बॉटेनी</span><br /><span class=""><span class=""></span>फिर साथ वाली लड़की ही बोली<br />मैं थोड़ा झिझकी</span><br /><span class=""><span class=""></span>- ये अनिमेष आपके ही क्लास में है ना? वो चला गया क्या।?. </span><br /><span class="">अनिमेष नाम सुनते ही जैसे उसके कान खड़े हो गये दोनो मुझे एकदम से देखने लगीं। - </span><br /><span class="">-आपको अनिमेष से मिलना है?</span><br /><span class=""> साथ वाली लड़की ही बोली</span><br /><span class=""><span class=""></span>-हाँ वो मेरा पुराना क्लासमेट है </span><span class="">मै यहाँ आई थी तो सोचा की उससे मिल लूँ।</span><br /><span class="">दोनों अभी भी मुझे घूर सी रही थी लगभग पंखुड़ी की आँखे कह रही थी की इसे अनिमेष से कुछ मतलब तो ज़रूर है मेरा डर एकदम से पुख़्ता हो गया. तू तो गयी बेटा. ये लड़की ले जाएगी अनिमेष को तुझसे छीन कर.दोनो ने एक दूसरे को देखा. पंखुड़ी अब कुछ असहज सी थी. साथ वाली लड़की ही बोली फिर से</span><br /><span class=""><span class=""></span>-वो आज नही आया है. शायद कही गया है</span><br /><span class=""><span class=""></span>-मतलब शहर मे नही है?</span><br /><span class="">- शहर में होता है तो कॉलेज ज़रूर आता है पर वो कल भी नही आया था</span><br /><span class=""><span class=""></span>ये पंखुड़ी गूंगी है क्या मैने मन में सोचा. अब और पूछने को कुछ नही था मै भी अधिक असहज हुई जा रही थी। - </span><br /><span class="">अच्छा थॅंक्स मै चलती हूँ<br />मैंने बेमन से कहा मै मुड़ने को ही हुई तो अचानक एक दूसरी आवाज़ सुनाई दी। - </span><br /><span class="">आपके पास उसका नंबर होगा पूछ लीजिए शायद हो ही शहर में</span><br /><span class="">ओह तो आप बोलती भी हैं मैने मन मे सोचा</span><br /><span class=""><span class=""></span>- असल में बहुत दिनो से हम मिले नही हैं तो नंबर भी नही है कोई. अगर आप के पास हो तो. वो बुरा नही मानेगा असल मे खुश ही होगा हम बहुत पुराने दोस्त हैं।</span><br /><span class="">दोनो फिर एकदुसरे को देखती रहीं </span><br /><span class="">-प्लीज़ उसे मत बताइएगा कि हमने दिया है नंबर</span><br /><span class=""><span class=""></span> पंखुड़ी झिझकते हुए बोली।-</span><br /><span class="">आपने अपना नाम ही कहाँ बताया है जो मै उसे बता दूँगी कि आपने दिया है </span><br /><span class="">मै मुस्कुराइ</span><br /><span class=""><span class=""></span> - ओह मै पंखुड़ी और ये सोनाली<br />वो अपना बैग खोलते हुए बोली</span><br /><span class=""><span class=""></span>- मतलब उसे बताना है कि नंबर पंखुड़ी और सोनाली ने दिया है</span><br /><span class=""><span class=""></span>- ओह नही प्लीज़ मै तो आपको नाम बता रही थी उसे मत कहियेगा<br />उसका हाथ रुक गया और वो घबडा सी गयी</span><br /><span class=""><span class=""></span>- ट्रस्ट मी वो बुरा नही मानेगा . लेकिन आप कह रहीं हैं तो मै उसे नही कहूँगी हाँ अगर आप लोग ही ना बता दें </span><br /><span class="">जिन लोगो ने कभी किसी को चाहा होगा वो जानते होंगे कि कब किसी का नाम सुनकर किसी के हाथ कापने लग जाते हैं कब और क्यों किसी के बारे में बात करने का मन भी करते है और बात हो भी नही पाती और कब किसी और के मूह से उसका नाम सुनकर और ये जान कर कि कोई और उसके बारे मे हमसे ज़्यादा </span>जानता है दिल बेतहाशा धड़कने लगता है। मैने पंखुड़ी के सामने ही अनिमेष के घर फ़ोन किया मुझे पता था कि वो घर पर नही है पर पूछा और अपना संदेश छोड़ा. मुझे पता था कि अगर उसके मन मे अनिमेष के लिए कुछ होगा तो मुझे पता चल जाएगा. और पता चल गया. मै जान चुकी थी कि सिर्फ़ अनिमेष ही नही चाहता उसे बल्कि वो भी चाहती है अनिमेष को. मै उदास हो चली थी. मै जानती थी कि दोनो एक क्लास मे पढ़ते हैं और कभी ना कभी दोनो एक दूसरे कि फीलिंग्स जान ही जाएँगे और तब मै खो दूँगी अनिमेष को हमेशा के लिए. मै मनाती रही कि दोनो एक दूसरे से कुछ ना कह पाएँ. ये थर्ड ईयर है साल ख़त्म होते ही दोनो के लिंक्स टूट जाएँगे. काश!. मैने तय किया कि मै अनिमेष को अपनी रीडिंग नही बताने वाली. कहीं कोई अपना बुरा खुद करता है. क्या हुआ कि वो नही चाहता मुझे पर कल किसने देखा है<br /><span class=""></span>कहते हैं कि कभी कभी आपकी ज़ुबान पर सरस्वती का वास होता है और आप जो भी कहते हैं सच हो जाता है. साल ख़त्म हो गया. दोनो एक दूसरे से कुछ नही कह पाए. और अलग हो गये. मै अक्सर अनिमेष से पंखुड़ी के बारे में पूछती रही और वो हंस के टालता रहा. पर जब आप किसी को सच्चे मन से चाहते हैं तो उसकी उदासी पढ़ सकते हैं. आज इतने दिनो बाद भी जब अनिमेष उसके बारे मे सुनकर हंस के टाल देता है तो मुझे अंदर से कुछ चुभता है कि मै दोनो कि फीलिंग्स जानती थी मै दोनो के लिए कुछ कर सकती थी पर मैने नही किया.मुझे सबसे बुरा तो तब लगा जब मैने ये पूरी बात अनिमेष को बताई. मै पढ़ सकती थी उसके मन में क्या है. पर उसने मुस्कुरा कर मुझे दांता कि जबर्ड्सती मै आपने को दोषी क्यों मानती हूँ. वो मुझे समझना लगा कि वो खुद इस बात को वही पर रोकना चाहता था. कहते हैं कि सच्चा प्यार खुशी देता है स्वार्थी नही होता. जब स्वार्थ आ जाता है तो प्यार नही मिल पाता. सच मे नही मिला ना पंखुड़ी को ना अनिमेष को, खैर मुझे तो मिलना ही नही था<br /><p></p>निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-86504477496480244532008-05-05T01:38:00.000-07:002008-05-05T01:52:51.640-07:00प्रियंका की नलिनी से मुलाकातकुछ दिन पहले मैं बिस्तर पर पड़े पड़े कुछ न्यूज देख रही थी अचानक एक न्यूज ने मेरा ध्यान खींचा। प्रियंका वाड्रा, अपने पिता राजीव की हत्या मी शामिल होने के चलते सजा काट रही नलिनी से जेल मे मिलने गई। रिपोर्टर्स तो तमाम कयास बाजी और रिपोर्ट्स के बाद चुप हो गए पर मैं सोचती रही।<br />इस न्यूज ने मुझे इतना न हिलाया होता अगर मैं ये न देखती की प्रियंका नलिनी के साथ बैठने के बाद देर तक रोती रही और फ़िर नलिनी और प्रियंका साथ साथ रोती रहीं। शायद ये वो दर्द है जो अभी तक नही निकल पाया होगा और प्रियंका का भी और नलिनी का भी।<br />शायद रोने से उस दर्द में कुछ कमी हुयी हो। रोने से जी हल्का हो जाता है न।<br />वो न्यूज देखते हुए और उसके बाद भी कई बार मैं भी बार बार रोई।<br />पता नही क्यों!निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-46314209629446631612008-02-23T01:15:00.000-08:002008-02-23T02:22:12.964-08:00मन्दिरअपने देश मी न रहने से कई प्रोब्लम्स होती हैं। मनपसंद चीजें नही मिलती- खाने की , देखने की और पता नही क्या क्या होता है जो छूट जाता है।<br />कई दिन मन करता है किसी मन्दिर जाने का, जैसे हनुमान जी का मन्दिर ! हर कही मिल जाता है भारत में, बस घर से निकलो और मन्दिर सामने। क्यूट से हनुमान जी खूब सारा लाल रंग पोते मुंह उठाये मिल जायेंगे। झट-पट हनुमान चालीसा या और जो कुछ आता है पढ़ डालो और मन्दिर का इनाम- प्रसाद लो और चलते बनो। क्या मजे होते हैं अपने घर रहने पर। अब पूरी दुनिया में तो गली-गली में मन्दिर मिलने से रहा।<br />मेरे दादाजी, हमारे गाँव के मन्दिर के पुजारी थे। मन्दिर क्या था, छोटा सा घेरा था जिसमे एक हनुमान जी की छोटी सी मूर्ति थी। हम सब पापा के साथ रहते थे पर दादाजी हमेशा गाँव ही रहे। उस मन्दिर मी बड़ी खास बात थी। वहाँ लोग मनौती मानते थे और पूरी होने पर या और खुशी के मौके पर हनुमान जी को वस्त्र चढाते थे। वो वस्त्र वास्तव मे कागज एक एक टुकड़ा होता था। जब मैं समझदार हुई तो मुझे बड़ा अजीब लगता था कि हनुमान जी को चढाना ही है तो कपड़े का वस्त्र क्यों नही चढाया जाता, कागज का टुकड़ा क्यों? मैं जब भी दादा जी से पूछती तो वो टाल देते थे। आखिर एक दिन उन्होंने बताया जब मैं वास्तव में कारण समझने लायक हो गई थी तब।<br />उन्होंने बताया कि मन्दिर मे अपनी खुशी मे कुछ चढाना सभी का हक़ होता है और जरुरी नही कि जो खुश हों उनके पास पैसे भी हों और अगर पैसे भी हों तो छोटे से गाँव मे अधिकतर गरीब आबादी मे कपड़े चढाना हो सकता है किसी के वश मे न हो तो वो क्या करेगा? भगवान् के आगे तो सभी बराबर होते हैं । लोगो की भेट भी बराबर ही रहे इसलिए कागज के कपड़े पहनते हैं भगवान्।<br /><span class="">मुझे हरिवंश राय बच्चन जी कि एक कहानी याद आती है, छोटी सी है- दो बहने थीं चुन्नी और मुन्नी । चुन्नी तीसरी में पढ़ती थी और मुन्नी दूसरी में। चुन्नी ने मनौती मानी कि अगर वो पास हुयी तो हनुमान जी को एक रुपये का <span class="">प्रसाद चढाएगी </span>, तो मुन्नी ने भी वैसे ही मनौती मान ली। चुन्नी तो पास हो गई पर मुन्नी नही। मां ने चुन्नी के लिए प्रसाद मँगवाया। जब वो प्रसाद चढाने जाने लगी तो मुन्नी भी ललचाई उसने मुंह गिरा के मां से पूछा कि मां जो पास नही होते वो प्रसाद नही चढा सकते? मां को प्यार आ गया उसने मुन्नी के लिए भी प्रसाद मंगवा लिया।</span><br /><span class="">जब मुन्नी प्रसाद चढा रही थी तो चुन्नी के मुंह पर ईर्ष्या का, मां के मुंह पर कौतुक का, मुन्नी के मुंह पर आह्लाद का और हनुमान जी के मुंह पर झेंप का भाव था।</span><br /><span class="">ये कहानी पढने के बाद जब मैं मन्दिर जाती थी तो हनुमान जी को देखते ही हँसी आ जाती थी। एक बार तो मैंने भी मनौती मानी। मेरी भी मनौती नही पूरी हुयी। अब मां तो थीं नही प्यार करने को तो मुझे ही ख़ुद पर प्यार आ गया और मैंने हनुमान जी को पूरे ११ रुपये का प्रसाद चढा दिया और ये सोच के खुश होती रही कि वो बेचारे कितना झेंपे होंगे।</span><br /><span class="">अब तो भगवान् से कुछ मांगती नही जल्दी जानती हूँ कि आज इंसान इतना लालची हो गया है कि भगवान् बेचारे <span class="">ख़ुद नाराज </span>रहते होंगे कहीं मुझ पर ही न झल्लाहट निकाल दे।</span><br /><span class="">भगवान् जी मजाक था बुरा मत मानिएगा!</span><br /><span class=""></span>निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-61239560107867616042008-02-18T00:44:00.000-08:002008-02-18T01:07:54.131-08:00पलाश का फूलएक दोस्त के ब्लॉग पर पलाश के फूल पर कविता पढ़ने को मिली तो मन किया कुछ लिखना चाहिए।<br />पलाश के फूल से पहला परिचय, आज सोचती हूँ तो हंसी आती है. बहुत पहले की बात है. एक दिन हम कुछ दोस्त एक गेम खेल रहे थे जिसमे हमे कुछ गेस करने होते थे. मुझे जिसके बारे मे गेस मारने थे, उसका पसंदीदा फूल पलाश का फूल था और तब तक मुझे पता ही नही था की ये चीज़ क्या होती है. मेरा गेस ग़लत निकला. मैने ये मानने से मना कर दिया की ऐसा कोई फूल होता भी है तो उसने एक कविता की लाइने बतायीं <span class=""></span><br /><span class=""></span>आए महंत बसंत<br />किंशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला<br />मै थोड़ा फ्र्स्टू टाइप की थी मुझे लगा की उसने मुझे ग़लत गेस करने के लिए ही पलाश का फूल चुना था. मै उससे जम कर गुस्सा हुई और कई दिन तक बात नही की।<br />काफ़ी दिन बाद मुझे खुद ही अपना गुस्सा भूलना पड़ा, क्योंकि उसने मेरे गुस्से को नोटिस ही नही किया।<br />बहुत दिन बाद जब उसे बताया की मै उससे इस बात को ले कर गुस्सा थी तो उसने बड़ी मासूमियत से कहा की अब कभी गुस्सा होना तो प्लीज़ बता देना की तुम गुस्सा हो नही तो हमे पता ही नही चल पाएगा।<br />उसके बाद आजतक जब किसी को ये फूल पसंद करते हुए सुनती हूँ तो हँसी आती है खुद पर।<br />जब किसी की कोई पसंद अनोखी होती है तो लगता है की ये ही पसंद क्यों. किसी को पलाश का फूल पसंद है तो ज़रूर इसके पीछे कोई वजह होगी. हमारी कुछ उम्र ही ऐसी थी की हम गेस करते थे की कुछ इश्क-विश्क जैसा मामला होगा. हमने बहुत कोशिश की पता लगाने की लेकिन एक चुप तो हज़ार चुप. कभी पता ही नही लगा की आख़िर क्या कोई ऐसा मामला था।<br />उसकी इस फूल की दीवानगी अभी तक है और उसके जन्म दिन के दिनो मे ही पलाश का फूल खिलता है मज़े की बात है की वो इकट्ठा करता है ढेर सारे फूल अभी तक.निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6350179288611261832.post-80938274811386172102008-02-14T00:53:00.000-08:002008-02-14T02:19:45.935-08:00शिकायतकिया व्यापर दर्द का<br />दिया दर्द और हरबार दर्द ही तौला,<br />फ़िर समेत कर सारी अधूरी हसरतें<br /><span class=""></span>पुराना सा एक म्यूज़ियम बना डाला।<br /><br />बंद करली खिड़कियाँ सारी<br /><span class=""></span>डाल दिया दरवाजों पर ताला,<br />कैद कर ढेर सारी पहचानी रोशनियाँ<br />एक गुमनाम अँधेरा बना डाला।<br /><br />बनकर याद तुम्हारे दिल मे ही रही<br />जानेक्यों तुमने ख़ुद अपने ही दिल को छला,<br />रोया मन जब भी तुम्हारा साथ देने को<br />पर मुस्कुराकर तुमने हर बार बेगाना बना डाला.निशाhttp://www.blogger.com/profile/10186293830747813806noreply@blogger.com6